ज्वलंत मुद्दाः भ्रष्टाचार की गहरी होती जड़.. कैसे लगे अंकुश?

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भारत में भ्रष्टाचार का एक प्रमुख विषय रहा है। आजादी केबाद से ही भारत भ्रष्टाचार के दलदल में धंसा नजर आने लगा है। 21 दिसम्बर 1963 को भारत में भ्रष्टाचार के खात्मे पर संसद में हुई बहस में डॉ राममनोहर लोहिया ने जो भाषण दिया था वह आज भी प्रासंगिक है। उस वक्त डॉ लोहिया ने कहा था सिंहासन और व्यापार के बीच संबंध भारत में जितना दूषित, भ्रष्ट और बेईमान हो गया है उतना दुनिया के इतिहास में कहीं नहीं हुआ है। ऐसे में अब ये सवाल उठता है कि आखिर भ्रष्टाचार की इस बढ़ती जड़ को कैसे रोका जाए। पढ़ें युवा डाइनामाइट विशेष..

नई दिल्लीः भ्रष्टाचार से देश की अर्थव्यवस्था और प्रत्येक व्यक्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत में राजनीतिक और नौकरशाही का भ्रष्टाचार बहुत ही आम माना जाता है। इसके अलावा न्यायपालिका, मीडिया, सेना, पुलिस आदि में भी भ्रष्टाचार है। शिक्षा विकास की जननी है। इसके बिना सर्वांगीण विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। लेकिन भ्रष्टाचार ने शिक्षा क्षेत्र में भी जड़ जमा लिया है। पिछले कुछ वर्षों से भारत एक नए तरह के भ्रष्टाचार का सामना कर रहा है। बड़े घपले-घोटालों के रूप में सामने आया यह भ्रष्टाचार कॉरपोरेट जगत से जुड़ा हुआ है।

ऐसे में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई पक्का रास्ता नजर नहीं आ रहा है, पर हां एक कोशिश तो जरूर की जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि भारत में भ्रष्टाचार के आरोपियों के लिए सजा की सीमा बहुत ही कम होती है। इसलिए भ्रष्टाचार की सजा ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए। अगर लोगों का परिश्रमिक उनकी जरूरतों के अनुसार होगा तो शायद भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है। इन सबसे भी ज्यादा जरूरी है कि अगर हम अपने जीवन का ही मूल्य सिद्धांत ही ईमानदारी बना लें।

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