जब बड़ी आबादी में देश के नौजवान बेरोजगारी से हारकर आत्महत्या कर रहे हैं तो ऐसे में देश के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। जहां एक तरफ देश को न्यू इंडिया बनाने के सपने देखे जा रहे हैं, वहीं युवाओं की इन परेशानियों को आखिर क्यों नजरअंदाज किया जा रहा है।
नई दिल्लीः भारत देश में आधी से ज्यादा फीसदी 35 साल से कम उम्र की है। लाखों की तादात में युवा वर्ग बेरोजगारी या नौकरियों से जुड़ी परेशानियों के कारण आत्महत्या कर रहे हैं। जो की चिंता विषय है।
बिहार का एक लड़के का एक सरकारी विभाग में सलेक्शन होने से पूरे गांव में खुशी का माहौल है। गांव में लड्डू बांट कर अपनी खुशी जाहिर की जा रही है, पर ये खुशी ज्यादा समय तक नहीं टिक पाई। आज उस लड़के की हालत ये है कि अपने परिवार का गुजारा करने के लिए उसे एक कॉल सेंटर में काम करना पड़ रहा है। उस लड़के का सलेक्शन सरकारी विभाग में हो तो गया, पर अब तक नौकरी नहीं मिल सकी।
नौकरी ना मिलने के गम ने उसके पिता का साया उसके सिर से छीन लिया, उसे भी आत्महत्या करने को मजबूर कर दिया था।
नौकरी ना मिलने पर सारी उम्मीद खो चुके लड़के ने आत्महत्या तक की कोशिश की पर वो बच गया। उसके पिता लंबे समय से बीमार थे, नौकरी मिलने पर उसने पिता का इलाज करवाने की सोची थी, पर ना नौकरी मिली और पिता का साया भी सिर से उठ गया।
ये कहानी किसी एक युवक की नहीं है। देश के आधी आबादी की ये कहानी है। आज देश में हर आधे घंटे में नौकरी ना मिलने पर युवा वर्ग मौत को गले लगा रहा है। ऐसे में न्यू इंडिया का सपना कैसे पूरा होगा जब बेराजगारी से हार कर लोग खुदकुशी कर रहे हैं। भारत जैसे देश में, जहां प्रति वर्ष लगभग एक करोड़ नए युवा नौकरी के लिए बाजार में उतर जाते हैं, वहां 0.5 प्रतिशत की वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। भारत की शैक्षिक व्यवस्था के पास ऐसा कोई रोडमैप नहीं है, जिससे भावी समय की मांग के अनुसार युवाओं को तैयार किया जा सके।